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निर्माण

1 min readFeb 24, 2019

इस लघु कविता के द्वारा मैं अपने विचार कुछ मुद्दों पर प्रस्तुत कर रहा हूँ| किसी भी जाति-समुदाय को मैं ठेस नहीं पहुँचना चाहता हूँ | विचारों को व्यक्त करना हमारे जनतंत्र का एक स्तंभ है और मैं आशा करता हु की आप भी इसे मानते है|

न मंदिर बने, न मस्जिद बने,

वहाँ सिर्फ़ ज्ञान का केन्द्र बने,

द्वेष नहीं वहाँ ज्ञान हो,

बुद्धि के बल का मान हो,

मनुष्य ने जो करी है प्रगति,

सिर्फ़ उसी का अभिमान हो,

विद्युत, औषधि, उपकरण, वाहन,

मिले जो हमें ये सारे साधन,

हर दिशा में फैला दो यह ज्ञान,

बना कर शिक्षा को अभियान,

राष्ट्र का ऐसा निर्माण करो,

विज्ञान जहाँ पर शीर्ष हो,

वो ही धर्म हो, वो ही कर्म हो,

न जात-पात, न कोई द्वेष,

मन से हटाकर सारे क्लेश,

शिक्षा से करे जो राष्ट्र को सशक्त,

वही है सच्चा देशभक्त।।

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